Popular low calories diet can cause depression study

वेट लॉस करने के लिए लोग कई तरह की डाइट फॉल करते हैं. जिसमें लो-कैलोरी डाइट भी शामिल है. इसमें कम कैलोरी वाले फूड्स डाइट में शामिल किए जाते हैं, ताकि वजन कम किया जा सके. हम जो भी खाते हैं उसका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. वेट लॉस के अलावा भी इस तरह की डाइट से स्किन को फायदे और नुकसान पहुंच सकते हैं.

हाल ही में एक स्टडी सामने आई हे जिसमें दावा किया गया है कि लो कैलोरी डाइट से डिप्रेशन की समस्या हो सकती है. बीएमजे न्यूट्रिशन प्रिवेंशन एंड हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि लो कैलोरी डाइट फॉलो करने से डिप्रेशन के लक्षण नजर आने की संभावना बढ़ सकती है.

क्या कहती है स्टडी?

स्टडी में 28,525 अमेरिकी वयस्क लोगों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है. जिन्होंने डिप्रेशन के लक्षणों की गंभीरता को जानने के लिए सवालों के जवाब दिए. लगभग 8 प्रतिशत लोगों में डिप्रेशन के लक्षण देखे गए हैं. 29 प्रतिशत लोगों का वजन सामान्य था, 33 प्रतिशत लोग ज्यादा वजन वाले थे और 38 प्रतिशत क्लिनिकली ओबेसिटी के मरीज थे. ग्रुप के 87 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे कोई खास डाइट नहीं ले रहे थे, जबकि 2,206 लोग लो कैलोरी डाइट ले रहे थे. शोधकर्ताओं ने पाया कि मोटापे से जूझ रहे और ओवर वेट लोगों में लो-कैलोरी डाइट बहुत सामान्य है.

डिप्रेशन के लक्षणों को पहचाने के लिए किए गए सवालों में मूड खराब होना, कम एनर्जी महसूस करना जैसे की थकावट और सही से नींद न पूरी होने जैसे लक्षण पाए गए हैं. यह लक्षण लो-कैलोरी डाइट ले रहे लोगों में ज्यादा दिख रहे थे, उन लोगों की तुलना में जिन्होंने बताया कि वह किसी भी तरह की डाइट पर नहीं है. कम कैलोरी डाइट लेने वाले ज्यादा वजन वाले लोगों में भी ये अंक ज्यादा थे.

कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय के अध्ययन लेखक डॉ. वेंकट भट ने कहा कि ये अंक लिंग के आधार पर भी अलग-अलग थे. लोग वजन कम करने के लिए डाइट में बदलाव कर रहे हैं और कम पोषण वाली डाइट ले रहे हैं. रिसर्च में पता चला है कि कम पोषण वाली डाइट लेने वाले पुरुषों में मानसिक तनाव के लक्षण महिलाओं की तुलना में अधिक देखे गए. किसी भी प्रकार की डाइट फॉलो करने वाले पुरुषों में शारीरिक असुविधा (somatic symptoms) ज्यादा देखी गई. जो लोग मोटापे से ग्रस्त थे और एक खास डाइट पैटर्न फॉलो कर रहे थे उनमें मानसिक तनाव और शारीरिक असुविधाएं उन लोगों से ज्यादा थी जो हेल्दी वेट पर थे और किसी डाइट पर नहीं थे.

डॉ. भट का कहना है कि ये निष्कर्ष पहले प्रकाशित अध्ययनों के अलग है, जिनमें जिनमें कहा गया था कि कम कैलोरी वाली डाइट से डिप्रेशन के लक्षणों में सुधार होता है. उन्होंने कहा कि यह अंतर इसलिए उत्पन्न हुआ है क्योंकि पहले की स्टडी रैंडमली कंट्रोल्ड ट्रेल थे, जहां पार्टिसिपेट ने सभी तरह के पोषक तत्व प्राप्त करने के लिए डिजाइन की डाइट ली थी. इसकी विपरीत, रियलिटी में लो-कैलोरी डाइट और मोटापे के कारण अक्सर न्यूट्रिएंट्स डिफिशिएंसी हो सकती है, खासकर के प्रोटीन, जरूरी विटामिन्स और न्यूट्रिएंट्स की कमी. इसकी वजह से भी शारीरिक तनाव हो सकता है. जो आपने सोचने, समझने, भावनाओं पर प्रभाव डालने समेत डिप्रेशन के लक्षणों को भी बढ़ा सकता है. डॉ. भट का कहना है कि एक इसका कारण वजन कम न कर पाना या फिर बढ़ जाना भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि जेंडर की असमानताओं के कारण ग्लूकोज और फैटी एसिड ओमेगा-3 भी हो सकता है, जो ब्रेन के लिए जरूर होता है.

डॉ. भट ने कहा: “कम कार्बोहाइड्रेट, ग्लूकोज या फैट, ओमेगा-3 युक्त आहार थियोरेटिकल रूप से ब्रेन फंक्शन के सही कार्य करने के क्षमता को खराब कर सकते हैं. सोचने, समझने, भावनाओं से जुड़े डिप्रेशन के लक्षणों को बढ़ा सकती है. खास करके ज्यादा पोषण संबंधी आवश्यकता वाले पुरुषों में.

एनएनईडप्रो ग्लोबल इंस्टीट्यूट फॉर फूड, न्यूट्रिशन एंड हेल्थ के मुख्य वैज्ञानिक और कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर सुमंत्रा रे ने बताया कि यह अध्ययन डाइट पैटर्न और मेंटल हेल्थ को जोड़ने वाले उभरते सबूतों को जोड़ता है. इस बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि क्या रेस्ट्रिक्टिव डाइट में सोचने, सीखने और याद रखने की क्षमता के लिए फायदेमंद माने जाने वाले पोषक तत्व, जैसे ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन बी 12 कम होते हैं, इसलिए यह डिप्रेशन के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं. लेकिन यह प्रभाव काफी कम देखे गए हैं.

प्रोफेसर रे ने कहा: “इस महत्वपूर्ण जांच को जारी रखने के लिए आगे भी अच्छी तरह से डिजाइन किए गए अध्ययनों की जरूरत है, जो अपनी डाइट को सही तरह से फॉलो करते हैं. उनके ऊपर उलझन महसूस होने जैसे प्रभाव कम होते हैं.

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